Gunjan Kamal

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काॅलेज का पहला दिन




मेरी सच्ची साथी! हर किसी के जीवन में कॉलेज का पहला दिन कुछ खास ही होता है। मन में उत्साह और उमंग के साथ - साथ जीवन में कुछ कर गुजरने का भी जज्बा होता है। मेरे भाइयों ने कॉलेज में मेरा एडमिशन तो करवा दिया था और पहले दिन वह मुझे छोड़ने भी गए थे लेकिन कॉलेज के गेट के भीतर कदम रखने पर दिल धक-धक कर रहा था और घबराहट भी हो रही थी कि ना जाने यहां के टीचर्स कैसे होंगे? 

मेरी सच्ची साथी! मेरे स्कूल के साथी पीछे छूट गए थे क्योंकि जिस साल मैंने बोर्ड की परीक्षा दी थी  मेरी सिर्फ एक दोस्त को छोड़कर सभी दोस्त फेल हो गए थे। कोचिंग और स्कूल के बहुत सारे दोस्तों का साथ भी छूट गया था। एकदम से अकेली पड़ गई थी मैं और मेरी एकमात्र दोस्त जो पास हुई थी उसने भी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले लिया था तो इस कॉलेज में मेरा ऐसा कोई भी दोस्त नहीं था जिससे मेरी पहले से ही जान पहचान हो। 

मेरी सच्ची साथी! स्कूल के दिनों में भी इतनी घबराहट नहीं हुई थी मुझे जितनी कॉलेज के पहले दिन हो रही थी। 
शायद एक भी पुराने दोस्तों का साथ ना होना भी इसका कारण हो सकता था। कॉलेज के पहले दिन जितनी घबराहट मुझे हो  रही थी उतना ही वह तीन समाप्त होने के बाद मेरे चेहरे पर संतुष्टि थी क्योंकि कॉलेज का पहला दिन मेरा बहुत अच्छा गया था। जो भी प्रोफेसर मेरे विषय को पढ़ाने के लिए आए थे सभी ने पहला दिन होने के कारण सभी लड़कियों  से हल्के फुल्के सवाल ही किए थे और वह भी उनके स्कूल और उनके बारे में ही और उन सभी के  बोलने का तरीका इतना अच्छा था कि मेरी सारी घबराहट जाती रही थी। 

मेरी सच्ची साथी! कॉलेज के पहले दिन का दिन समाप्त होने के बाद जब मैं घर वापस आए तो मैं पूरे समय अपनी मां से कॉलेज के बारे में ही बातें करती रहे प्रोफ़ेसर ने यह पूछा मुझसे वह पूछा मुझसे यही बातें कर कर के मैंने अपनी मां का दिमाग उस दिन बहुत खाया था लेकिन वह भी बेचारी मेरी बातों को झेल रही थी मैं जान रही थी कि स्कूल से आने के बाद बहुत थक गई होंगी लेकिन मैं अपने उत्साह को दबा नहीं पा रही थी और उसी उत्साह में मैं उन्हें अपने कॉलेज के बारे में बताती जा रही थी और वह  भी काम करते हुए सुन भी रही थी और तो और वे कॉलेज के बारे में पूछ भी रही थी जिससे कि मुझे उन्हें बताने की और भी इच्छा हो रही थी और मैं अपनी इच्छा को दबा नहीं रही थी बल्कि उनको बता कर अपने आप को बढ़ावा भी दे रही थी। 

मेरी सच्ची साथी! कॉलेज के पहले दिन ही मैंने दो दोस्त भी बना ली थी। मैंने क्या बनाई थी उन लोगों ने ही मुझे अपना दोस्त बना लिया था। कॉलेज में जाने के बाद मुझे पता चला कि वें दोनों मेरे उसी मोहल्ले में रहती है जिस मोहल्ले में मेरा अभी २ साल पहले घर बना है। लड़कियों का साथ मिल जाने से मैं और भी खुश थी और यही बातें में मां को भी बता रही थी मैं भी थोड़ी निश्चित ही कि चलो मैं कॉलेज में और वह भी पहले दिन इसे साथ आने - जाने वाली तो मिल गई और वह भी एक नहीं बल्कि दो-दो। 

मेरी सच्ची साथी! अपने कॉलेज के और भी बहुत सारी यादों को लेकर फिर से तुमसे मिलने आऊंगी तब तक के लिए मुझे जाने की इजाजत दो। 

🙏🏻🙏🏻बाय बाय 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💗💞💗



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9 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:45 PM

Nice

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अदिति झा

03-Feb-2023 01:21 PM

Nice 👍🏼

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